Thursday, May 8, 2008

शायरी

1- आग में डूबा हुआ बर्फ़ का टुकडा,

क्या सोचते हो, अपने को बचा पायेगा पिघलने से।

इश्क भी तो वो आग है,

फ़िर कैसे बचेगा ये दिल झुलसने से॥

2- समुन्दर के आंसुओ को देखा है कभी,

उसने भी इश्क किया था कभी।

इक अधूरे प्यार की ख्वाहिश में उसने,

उन आंसुओ को अपनी पहचान बना लिया॥

3- मेरी चाहत का इम्तहान लिया उसने,

इक बार मरने का नाटक किया उसने।

वो तो उठ कर बैठ गये लेकिन,

उसकी गली से मेरा जनाजा निकला॥

4- प्यार के गम को जाम में मत डुबाना,

दिल टूटा है तो जमाने से मत छिपाना।

इस आग में जलने का भी कुछ अलग मजा है,

दीवानों की फ़ेरहिस्त में एक नाम अपना भी सजाना॥

5- इस जुदाई में तुम कहते हो कि,

तेरी यादों के सहारे जी लूँगी।

तेरी इन यादों के सहारे हम,

खुद मौत को गले लगा लेंगे॥

Tuesday, May 6, 2008

‘राज’नीति

राज ठाकरे के बयान आजकल समाचार चैनलों में खूब छाये हुये है। इसी को ‘राज’नीति कहते है कि किस तरह बिना किसी पहचान के भी भारत में अपनी पहचान बनाना, और यह सम्भव हुआ है समाचार चैनलों के आग बरसाते विश्लेषण तथा विशेषज्ञों के राज विरोधी बयानों से।

मैं भी एक उत्तर भारतीय हूँ, लेकिन मेरा खून नहीं खौलता है जब राज ठाकरे कुछ उल्टा सीधा बयान देता है। दरअसल मुझे किसी की बात याद आ जाती है और उसे याद करके मै मुस्कराने लगता हूँ। वो बात थी-“इलाके तो कुत्तों के होते है, इंसानों के नहीं। यदि किसी कुत्ते के इलाके में कोई आदमी या जानवर जाता है तो कुत्ता भौंकता ही है। मैं ये नहीं कह रहा कि राज ठाकरे कुत्ता है लेकिन उसकी हरकतों को जरुर उस आवारा जानवर वाली ठहरा रहा हूँ। भगवान ने एक कुत्ते की आत्मा धोखे से एक इंसान के शरीर में डाल दी लेकिन लोगों को पता चल ही गया कि भगवान से कहाँ पर गलती हुयी। भला आजतक कुत्ते की पूंछ भी कभी सीधी हुयी है क्या?

मैं तो पूरे भारत को अपना घर मानता हूँ, बल्कि इस ग्लोबलाइजेशन के दौर में सारा संसार ही एक घर के समान हो चुका है। मैं कहीं भी आ जा सकता हूँ, धूम सकता हूँ, खा सकता हूँ, रह सकता हूँ और इस दौरान अगर कोई रास्ते का कुत्ता मेरे ऊपर भौंकता है तो मै कभी ध्यान नहीं देता और न ही ये किसी न्यूज चैनल के लिये ब्रेकिंग न्यूज होगी। वैसे भी कहा गया है कि-कुत्ते भौंकते रहते है और हाथी अपनी मस्त चाल चलता रहता है।

Friday, March 14, 2008

वो भिखारी

ट्रेन ने हार्न बजाना शुरू कर दिया था। कुछ यात्री जो बाहर पानी की बोतल तथा चिप्स के पैकेट खरीद रहे थे, वापस आकर ट्रेन में चढ चुके थे तथा अपनी अपनी जगह तलाश रहे थे। अचानक एक भिखारी भी ट्रेन से लटक गया और सफ़लता पूर्वक ट्रेन में चढ गया। ट्रेन रफ़्तार पकड चुकी थी। वो भिखारी दरवाजे के पास अपना कम्बल बिछा कर बैठ गया। सामने की सीट पर एक सूट-बूट पहने बैठे सज्जन को शायद उस भिखारी की शक्ल पसंद नही आयी जिस कारण वो सज्जन चिल्ला पडे- ओय, यहाँ कहाँ बैठ रहा है? कोई और डिब्बा तलाश ले, चल भाग यहा से। उस भिखारी ने उस सज्जन की ओर देखा और आँखों ही आँखों से वही बैठे रहने देने की विनती की। तभी वहाँ टीटी आ गया। टीटी ने उस सज्ज्न का टिकट चेक किया तथा भिखारी से टिकट मांगा। टीटी को देखकर भिखारी ने अपने हाथ जोड लिये। टीटी ने उसको लात मारते हुये कहा- चल भाग यहा से, वरना जेल में सडा दूंगा। भिखारी को शायद इस व्यवहार की उम्मीद नहीं थी, उसे गुस्सा आ गया था। वो अचानक ही चिल्ला पडा- “HOW DARE YOU TO TOUCH ME?” भिखारी के मुँह से इतनी शुध्द अंग्रेजी सुनकर टीटी अचानक घबरा सा गया था, उसके माथे से पसीने की बूंद टपकने लगी थी। सारे डिब्बे के लोग अपनी जगहों पर खडे हो गये और कौतूहलवश उस भिखारी को देखने लगे। अचानक वो सूट वाला सज्जन अपनी जगह से उठा और उस भिखारी को उठाते हुये वोला- अरे बाबा, आप वहा नीचे क्यों बैठे है? आइये मेरे साथ बैठिये।” पूरे डिब्बे में लोग अब उस भिखारी के प्रति सहानुभूति से भर गये थे। एक यात्री टीटी पर चिल्लाया- इस तरह किसी को लात मारी जाती है क्या? बाबा कितने बूढे है, जानवर हो क्या? कहीं से आवाज आयी- अरे, बाबा भूखे होंगे। कुछ खिला पिला दो। कोई और बोला- बाबा लगते तो अच्छे घर के है, शायद घर वालो ने निकाल दिया होगा। हर तरफ़ खुसर-फ़ुसर शुरू हो गयी थी। एक बूढा आदमी बोला- शायद बाबा के बेटो ने अपनी बीवियों के कहने से घर से निकाल दिया होगा। आज-कल की नयी पीढी के दिलों में हम बूढों के लिये शायद कोई जगह ही नहीं बची है। लोग अब उस भिखारी को खिला पिला रहे थे।

मैं उसी डिब्बे में एक कोने में बैठा ये सब देखकर सोच रहा था कि अंग्रेजी भाषा किसी भिखारी तक को भी सम्मान दिला सकती है, ये तो अदभुत है। लेकिन मन ही मन आज की पीढी के लोगो की छिपी हुयी गुलामी भी मुझे दिखायी दी। लोगो का तन नहीं लेकिन मन, मस्तिष्क जरूर गुलाम था, वो था गुलाम- अंग्रेजी भाषा का।

Sunday, March 9, 2008

कुछ सुझाव

  1. सरकार को आरक्षण समाप्त कर देना चाहिये क्योंकि आरक्षण के कारण समाज

कई हिस्सों मे बँट गया है। पहले ही समाज विभिन्न धर्मों मे बिख़रा हुआ है

लेकिन हिन्दू धर्म को भी बाँट कर रख दिया गया है। समाज को पाँच हिस्सों

में वर्गीकृत करना चाहिये-

1) उच्च वर्ग

2) उच्च-मध्यम वर्ग

3) मध्यम वर्ग

4) निम्न-मध्यम वर्ग

5) निर्धन वर्ग

इन वर्गो के हिसाब से आरक्षण देना चाहिये जिसमे 4 तथा 5 वें वर्ग पर

ज्यादा ध्यान देना चाहिये। इसमे परिवार की आय के साथ-साथ अन्य चीजो

पर भी ध्यान देना चाहिये। अगर इनका कल्याण हो गया तो देश से असली

गरीबो का उद्धार होगा।

  1. आजकल एड़स जैसी भयावह बीमारी भारत में काफ़ी तेजी से फ़ैल रही है।

सारे विश्व मे सबसे ज्यादा रोगी भारत में पाये जाते है। दरअसल यहाँ पर

काम कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं की परेशानी ये है कि वो भारत में ठीक

तरह से जागरुकता नही फ़ैला पा रही है क्योंकि वेश्याओं को ढूँढ़ना काफ़ी

मुश्किल होता है। रेडक्रास जैसी संस्थायें भी इन वेश्याओं तक दवाये नहीं

पहुँचा पाती है। इस कारण ये संक्रमित वेश्याये बहुत बुरी परिस्थितियों मे

जीती है तथा जानकारी के अभाव मे आम जनमानस इनके सम्पर्क मे आकर

खुद भी पीडित हो जाते है।

इसका समाधान है कि वेश्याव्रत्ति को उधोग का दर्जा दे दिया जाये तथा इस

पर कर भी लगाया जाये जिससे सरकार को राजस्व की प्राप्ति भी हो तथा

इसमे काम करने वाली महिलाओं को सरकार सूचीबद्ध करे। ताकि समय समय

पर इनकी जाँच भी होती रहे तथा सूचीबद्ध करने से पहले वेश्या बनने की

इच्छा रखने वाली महिलाओ तथा पुरुषों की एड़स की जाँचपड़ताल की जाये।

इनको मुफ़्त मे गर्भनिरोधक बाँटा जाये तथा इनको अपनी दुकान खोलने की

अनुमति दी जाये लेकिन आबादी से कुछ दूर तथा केवल रात 11 बजे से

सुबह 4 बजे तक ही।

हमारी संस्कृति मे वेश्यालय को सामाजिक स्वीकारोक्ति प्राप्त थी तथा वेश्याओं

को सम्मान की नजरों से देखा जाता था। इससे समाज मे बलात्कार की

घटनाओं मे भी कमी आती है तथा लोग कामकाज मे भी ध्यान देते है क्यों

कि वर्तमान मे आम लोग केवल यौन कुंठाओ मे उलझे रहते है।

कट्टरता दोनो की खतरनाक

बरसो पहले जो गलती पाकिस्तान ने की थी वो गलती अब भारत भी कर रहा है।

बात शुरु हुयी थी सन् 1947 से, जब 14 अगस्त को पाकिस्तान के नक्शे

का निर्धारण हुआ था। शुरु मे कुछ धार्मिक मुस्लिम कट्टरपंथी समूहों ने अपने

अपने नियम बनाये तथा लोगों से उन समूहों में शामिल होने की अपील की। बडी

संख्या में मुस्लिम लोग उन समूहों में जुडते चले गये थे। आरम्भ में तो इन

पाकिस्तानी संगठनों का मुख्य उद्देश्य समाज में धर्म की आस्था जगाना था और

उसमें ये काफ़ी सफ़ल भी रहे। पाकिस्तान सरकार से इन्हें आर्थिक मदद भी मिली

लेकिन धीरे धीरे इन संगठनों के अंदर कट्टरता का समावेश होता चला गया। अब

ये समूह कुरान का हवाला देकर आम मुस्लिम युवकों को गैर-मुस्लिमों के खिलाफ़

जिहाद की शिक्षा देने लगे। आम मुस्लिम युवकों को जबरदस्ती इस्लाम का पालन

कराया जाने लगा। दाढी रखना, दिन मे पाँच बार नमाज पढ़ना, रोजा रखना

इत्यादि अनिवार्य कर दिया गया। लेकिन कुछ मुस्लिम युवकों को जबरदस्ती धर्म

का पालन कराया जाना ठीक नहीं लगा क्योंकि धर्म आस्था पर टिका होता है और

ये लोग अपनी आस्था के प्रदर्शन को अपना निजी मामला मानते थे, ये नहीं

चाहते थे कि कोई अन्य व्यक्ति आकर इन्हे बताये कि क्या करना धार्मिक है और

क्या अधार्मिक। अब ऐसे युवकों को चुन चुन कर पीटा जाने लगा तथा डंडो के

बल पर इस्लाम का पालन कराया जाने लगा। पाकिस्तान सरकार ने इसे आम

बात समझ कर इस पर ध्यान नहीं दिया।

ये सबसे बडी गलती की थी पाकिस्तान सरकार ने, जिसने आज पाकिस्तान की

सत्ता हिलाकर रख दी है। इन कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों ने इस छूट का फ़ायदा

उठाकर ये ऐलान कर दिया कि जो कोई मुस्लिम व्यक्ति हमारे कहे अनुसार नही

चलेगा उसे जान से मार डाला जायेगा। इन संगठनों के मुखिया अब सरकार की

नाक के नीचे खुलेआम सभायें आयोजित करने लगे और इन सभाओं मे अस्त्र-शस्त्र

भी खुलेआम आसमान मे दागे जाने लगे। इन सभाओं मे जिहाद का नारा दिया

जाने लगा तथा गैर-मुस्लिमों के खिलाफ़ फ़तवे जारी होने लगे। अब पाकिस्तान

सरकार की आँखें खुली, सरकार ये देखकर दंग रह गयी कि सेना मे प्रयोग होने

बाले अस्त्र-शस्त्र इन कट्टरपंथियों के पास कैसे गये। लेकिन तब तक बहुत

देर हो चुकी थी। सरकार के दिये पैसों से इन संगठनों ने सेना मे अपनी पैंठ

बना ली थी। सेना इन कट्टरपंथियों के इशारे पर चलने लगी। यहीं से पाकिस्तान

में सैन्य सरकार का फ़ार्मूला बना और मौका देखकर सेना ने तख्तापलट कर

दिया। तब से पाकिस्तान मे हमेशा सैन्य सरकार ज्यादा बनती है, लोकतंत्र का

मतलब भी नहीं जानते वहाँ के निवासी। बात फ़िर से पैसो पर आकर अटक गयी

थी, क्योंकि खुद की सरकार होने के बावजूद पाकिस्तान मे आर्थिक तंगी की

हालत थी। कोई विकास तो हो नही रहा था वहाँ पर, और जनता पर कर का

बोझ डालकर ये संगठन अपनी लोकप्रियता खोना नहीं चाहते थे। साथ ही साथ

इन्होंने जिहाद का जो नारा दिया था उसके लिये गैर-मुस्लिमों को मारने के

लिये हथियारों की जरुरत थी और हथियार खरीदने के लिये इतना पैसा भी नहीं

था इनके पास।

उसी वक्त दुनिया के एक हिस्से में सोवियत संघ और अमेरिका मे शीत युद्ध चल

रहा था। अफ़गानिस्तान की सीमा से सोवियत संघ की सीमा मिलती थी और इस

कारण अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन नामक लडाके को आर्थिक मदद देकर

सोवियत के विरुद्ध लड़ने के लिये तैयार किया। ओसामा बिन लादेन एक अफ़गान

कबाइली था जो पैसो के लिये कुछ भी कर सकता था। उसको लडाकों की

आवश्यकता थी और पाकिस्तान को पैसों की। ओसामा बिन लादेन ने पाकिस्तान

को आर्थिक मदद देकर पाकिस्तानी युवकों को सोवियत के खिलाफ़ लडने के

लिये प्रशिक्षण देना शुरु कर दिया। इस तरह से ओसामा बिन लादेन की फ़ौज

लम्बी होती चली गयी। सोवियत संघ पर कबाइली हमले होते चले गये। लेकिन

कुछ समय बाद राजनीतिक स्थिरता के बाद अमेरिका और सोवियत संघ मे

संधि हो गयी और माहौल सुधर गया। अमेरिका ओसामा बिन लादेन की ताकत

जानता था और उसके द्वारा बार बार आर्थिक सहायता की माँग के कारण

अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मार डालने का निश्चय किया। अमेरिका

ने ओसामा बिन लादेन के कुछ सैनिको को पैसो का लालच देकर उसको मारने

का षड्यन्त्र रचा लेकिन इन स्वामिभक्त सैनिको ने ओसामा को सारी बात बता

दी और इस तरह ओसामा बिन लादेन आज अमेरिका का दुश्मन बन बैठा है।

ओसामा बिन लादेन जिहाद का सहारा लेकर अमेरिका से अपनी व्यक्तिगत

दुश्मनी निकाल रहा है और कुरान का सहारा लेकर अपनी फ़ौज बढा रहा है।

यहाँ एक बात समझ मे आती है कि यदि पाकिस्तानी सरकार धार्मिक कट्टरता

को शुरुआत मे ही कुचल देती तो आज ये अस्थिरता पाकिस्तान मे होती।

क्योंकि आज पाकिस्तान में सभी कट्टरपंथी संगठनों का सीधा संवाद रहता है

अलकायदा से, जो कि ओसामा बिन लादेन का संगठन है, जो लोकतंत्र तथा

विकास को पाकिस्तानी जनता से दूर कर रहा है।

अब ठीक ये खतरा भारत में भी दिखाई दे रहा है, शिव सेना, बजरंग दल

तथा विश्व हिन्दू परिषद जैसे कट्टरपंथी समूह के रुप मे। आजकल समाचारों

में दिखाया जा रहा है कि किस तरह से ये हिन्दू कट्टरपंथी समूह कानून को

हाथ मे लेकर समाज मे न्याय करने निकल पड्ते है। किसी को सरेआम पीटने

मे इनको कोई कुछ नहीं कर पाता है। हालांकि ये सरासर भारतीय संविधान का

उलंघन है लेकिन भारत सरकार कुछ ध्यान ही नही दे रही है। इस तरह मिली

छूट का फ़ायदा उठाकर ये धीरे धीरे कब खतरनाक हथियार भी उठा ले, ये

भारत सरकार को पता भी नहीं चलेगा और पाकिस्तान की तरह ये भी फिर

अपनी खुद की ताकत बढा कर सैन्य सरकार भी बना सकते है।

मै ये बात दावे के साथ कह सकता हूँ कि यदि सरकार ने जल्द ही ऐसी

कट्टरता पर रोक नही लगायी तो इस देश को बरबाद होने से कोई भी नहीं

रोक पायेगा क्योंकि इतिहास खुद को दोहराता जरुर है।

अमित कुमार वर्मा

02/सितम्बर/2007