राज ठाकरे के बयान आजकल समाचार चैनलों में खूब छाये हुये है। इसी को ‘राज’नीति कहते है कि किस तरह बिना किसी पहचान के भी भारत में अपनी पहचान बनाना, और यह सम्भव हुआ है समाचार चैनलों के आग बरसाते विश्लेषण तथा विशेषज्ञों के राज विरोधी बयानों से।
मैं भी एक उत्तर भारतीय हूँ, लेकिन मेरा खून नहीं खौलता है जब राज ठाकरे कुछ उल्टा सीधा बयान देता है। दरअसल मुझे किसी की बात याद आ जाती है और उसे याद करके मै मुस्कराने लगता हूँ। वो बात थी-“इलाके तो कुत्तों के होते है, इंसानों के नहीं। यदि किसी कुत्ते के इलाके में कोई आदमी या जानवर जाता है तो कुत्ता भौंकता ही है।” मैं ये नहीं कह रहा कि राज ठाकरे कुत्ता है लेकिन उसकी हरकतों को जरुर उस आवारा जानवर वाली ठहरा रहा हूँ। भगवान ने एक कुत्ते की आत्मा धोखे से एक इंसान के शरीर में डाल दी लेकिन लोगों को पता चल ही गया कि भगवान से कहाँ पर गलती हुयी। भला आजतक कुत्ते की पूंछ भी कभी सीधी हुयी है क्या?
मैं तो पूरे भारत को अपना घर मानता हूँ, बल्कि इस ग्लोबलाइजेशन के दौर में सारा संसार ही एक घर के समान हो चुका है। मैं कहीं भी आ जा सकता हूँ, धूम सकता हूँ, खा सकता हूँ, रह सकता हूँ और इस दौरान अगर कोई रास्ते का कुत्ता मेरे ऊपर भौंकता है तो मै कभी ध्यान नहीं देता और न ही ये किसी न्यूज चैनल के लिये ब्रेकिंग न्यूज होगी। वैसे भी कहा गया है कि-“कुत्ते भौंकते रहते है और हाथी अपनी मस्त चाल चलता रहता है।”
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