Wednesday, June 20, 2012

नैतिकता


एक बार एक राजा के दरबार मे एक व्यक्ति एक जेबकतरे को पकड कर ले गया। राजा ने उस से पूछा कि तुम क्या करते हो? तो वो व्यक्ति बोला कि राजन मै भी एक जेबकतरा हूँ लेकिन हमारे कुछ नैतिक नियम है जिस को इसने तोडा है। इसने एक अपाहिज राहगीर को लूटा है जब कि हमारे स्पष्ट नियम इस तरह की लूट को नाजायज बताते है अत: इसको दण्ड दिलवाने के लिये आपके पास लाया हूँ। राजा ने अपने सैनिको को आदेश दिया कि इन दोनों को पकड कर कैदखाने मे डाल दिया जाये जिस पर वहाँ विराजमान कुल गुरू ने राजन को ऐसा करने से रोकते हुये कहा- ‘महाराज, इस व्यक्ति ने अपनी नैतिकता के वशीभूत होकर एक सम्माननीय कदम उठाया है और आपको अपनी नैतिकता के वशीभूत होकर इसका सम्मान प्रकट करना चाहिये, न कि इसे कैदखाने में डाल देना चाहिये।’ राजन को अपनी गलती तुरन्त समझ में आ गयी और उस व्यक्ति का आभार प्रकट करते हुये कहा कि जब मेरे सैनिक तुमको रंगे हाथ पकड कर लायेंगे तब मै अपनी नैतिकता के अधीन तुम्हे उस अपराध के लिये कडा से कडा दण्ड दूंगा लेकिन अभी हमारी नैतिकता तुम्हे पुरस्कार प्रदान करने की आज्ञा दे रही है।

Monday, October 17, 2011

दिल उदास क्यूं है?

कभी कभी कुछ आरजू पूरी नहीं होती,
मांगते है दुआ पर कबूल नहीं होती,
रास्ते हैं छोटे, पर पाँव थक जाते है चलते चलते,
मंजिलों की तलाश कभी पूरी नहीं होती।

चाहा था लिखूं जीवन की कहानी कलम से अपनी,
घिसते रहे हम, पर रहा कोरा वो अब भी,
इन कागजो पर स्याही अपने निशान नहीं छोडती,
स्याह जिंदगी हर किसी की रोशन नहीं होती।

नहीं है ताकत अब और आगे चलने की,
नहीं है हिम्मत अब और पग धरने की,
काली है रात, क्यों सुबह नहीं होती?
आशा और उम्मीद अभी भी क्यों नहीं सोती?
क्या कल था, क्या आज है, हैं खाली हाथ,
कुछ हाथों की रेखाओं की किस्मत नहीं होती।

डूबती नाव पे सवार हो हम समुन्दर से टकराने चले,
कडकडाती बिजलियों में हम सीना तान चले,
जानते थे कि डूब जायेगी ये नाव जिन्दगी के इस तूफ़ान में,
जज्बातों की जिद में हम, हाथों से छेद नाव के थाम चले।