Monday, August 15, 2011

कम्पूटर गेम किस तरह बनाये?

हम सभी लोग अपने अपने कम्प्यूटर में कोई न कोई गेम जरूर खेलते है, लेकिन क्या ये जानने की इच्छा कभी नही हुयी कि ये खेल आखिर बनते कैसे है?
अगर आप कम्प्यूटर गेम बनाना चाहते है तो आपको-
1- रचनाशील होना पडेगा।
2- कहानी की कडी दर कडी जोडनी आनी चाहिये।
3- फ़ोटोशाँप, आटोकैड माया, 3डी मैक्स पर कार्य करना आना चाहिये, अगर नहीं आता है तो थोडी मेहनत से ही आप आसानी से सीख सकते है, आनलाईन आप यू-ट्यूब और अन्य कुछ फ़ोरम से ये फ़्री में आसानी से सीख सकते है।
4- एक साफ़्ट्वेयर यूनिटी 3डी को आप डाउनलोड कर ले।

कम्प्यूटर गेम बनाने की विधि-
1- सर्वप्रथम आप एक कहानी बनाये जिसमें एक नायक/नायिका हो, खलनायक हो, कुछ बाधाये हो। अगर आप एक एक्शन गेम बनाना चाहते है तो इस तरह की कहानी एक कागज पर लिख ले।
2- कहानी को सीन मे बाँटें, जिसमें प्लेयर को करने वाले कार्य तथा लक्ष्य को लिख ले।
3- माया या 3डी मैक्स साफ़्ट्वेयर पर जाकर अपने खिलाडियों की 3डी चित्र को बनाये, अच्छा होगा कि पहले एक कागज पर, सभी पात्र, सीन(मैदान, पहाड, पेड, यान इत्यादि) बना ले।
4- अलग अलग फ़ोल्डर में खिलाडी(हीरो, विलेन)  तथा सीन को रक्खें।
5- यूनिटी 3डी में जाकर सीन को खोले और उस पर अपने खिलाडी को सेट करे।
6- जावा स्क्रिप्ट की सहायता से खिलाडी के हाव भाव को सेट करे अन्यथा आप केवल एक एनिमेशन ही बना पायेगे कोई गेम नहीं।
7- यूनिटी 3डी आपको खुद गेम बनाने में बहुत मदद करेगा। फ़िर उसको बना कर अपने कम्प्यूटर में खेल कर चेक करे और फ़िर मार्केट में आनलाईन बेंचे।

Wednesday, June 8, 2011

देह


स्त्री और पुरुष, देह दोनो के पास है, लेकिन पुरुषों के लिये नियम, कायदे कानून कभी नहीं बनायें गये हाँ पर स्त्री की देह को कायदे कानून से भर दिया गया। गौरतलब बात ये है कि स्त्रियों को बन्धनों में जकडने वाला कोई स्त्री नहीं बल्कि पुरुष ही हैं। कभी हलवाई की दुकान मे चले जाइये, अपने खुले बडे बडे स्तनों की नुमाइश करते हलवाई को देखकर किसी स्त्री ने कभी नहीं कहा की पूरे कपडे पहन कर हलवाईगिरी किया करो, कभी किसी भारतीय संस्कृति के ठेकेदार ने आपत्ति नहीं की कि ये हमारी संस्कृति को नष्ट कर रहा है। जब कोई स्त्री समानता के सिद्धांत के अनुसार अपने देह को थोडे कम कपडों मे लाती है तो सबसे पहले आपत्ति कोई महिला नहीं बल्कि पुरुष करता है। ये बिल्कुल गैर समझदारी है, अभी भारतीय पुरुष परिपक्व नहीं हुआ है, इतना पढने-लिखने के बावजूद वो अगर ये कहता है कि स्त्री देह ढकने के लिये होती है तो यही अर्थ निकलता है कि अभी भी वो बच्चा है।
रही बात टोपलैस होने की, तो वक्षों को इतना बडा मुद्दा कभी बनना ही नहीं चाहिये था, एक माँ अपने बच्चों को दुग्धपान कराती है इनसे, यानी जन्म के वक़्त से ही जो मनुष्य इनसे जीवन पा रहा है, बडे होने पर ऐसा क्या हो जाता है कि वही मनुष्य इसे अश्लीलता का पैमाना मानने लगता है? स्त्रियों को खुद आगें आना होगा और समाज की परवाह न कर पुरुषों के समान वक्षों को खुला रखने की नयी सोच को सींचना होगा तभी इस समाज मे वक्ष आम अंग बन पायेगा। आदिवासी जो नग्न अवस्था में रहते है उनमें कभी बलात्कार की घटनायें नहीं होती क्योकिं जब उनके अंग एक दूसरे के सामने खुले हुये है तो बासना किस अंग के दिख जाने से पैदा होगी। कपडों के कारण ही पुरुषों की स्त्री अंगो को देखने की कुंठा हमेशा मन मे बनी रहती है, जब कपडे ही ना होंगे तो कुंठा किस बात की बाकी रहेगी।
विकसित देश अपनी खुली सोच के कारण ही विकसित है, वहाँ भी स्त्रियों को वहाँ के पुरुषों से समानता के लिये संघर्ष करना पडा तब कहीं जाकर वहाँ की स्त्री अपने पसन्द के कपडे पहन सकी है। भारत मे शुरुआत होनी अभी बाकी है।