Wednesday, November 3, 2010

रूडकी और विद्यार्थी

जो हुआ उस पर बहुत बहस हुयी, मीडिया ने ऐसे दिखाया की मानो वास्तव में दुनिया नष्ट हो गयी, पृथ्वी पर जलजला आ गया, लंका मिल गयी, बाबा को भूत मिल गया और चैन से सोने वाले जाग गए। रुड़की के कॉलेज में कुछ विद्यार्थियो द्वारा लिपस्टिक प्रतियोगिता हुयी जिसमे लड़के लड़कियों के होंठो पर अपने मुह के द्वारा लिपस्टिक लगा रहे थे। खेल खेला कुछ बच्चो ने और उनके मासूम खेल को अपनी गन्दी मानसिकता की खिड़की से देखा भारत की भूतो, बाबाओं , नागिन की हितैषी मीडिया और कुछ वोट के लालची पार्टियो ने। अहमदाबाद में बेक़सूर लोगो को दंगो में तलवार से मौत के घाट उतारने वाले आज भारतीय संस्कृति के बिगड़ने की दुहाई दे रहे है? अयोध्या और ऐसे ही अन्य मुद्दों पर आम जनता को उलझाने कर लड़वाने का जूनून रखने वाले ऐसे लोगो को मै कतई राष्ट्रवादी नहीं मानता बल्कि ये वास्तविक देशद्रोही है।
बात मानसिकता की है, जैसा मनुष्य सोचता है उसको दुनिया भी वैसी ही दिखती है। अश्लील सोच वालो को आम लड़की के होंठो में ही अश्लीलता दिखने लगी है। क्या लड़की के शरीर का हर अंग अश्लील है? अगर कोई लड़का किसी लड़की को नाखूनों में नैलपोलिश लगाता तो भी ये लोग रोते रहते। एक जगह हम स्त्री को देवी का दर्जा देते है और दूसरे ही पल उसको गली, चौराहों, पान की दुकानों में देख कर सीटी बजाते है, गन्दी फ़ब्तिया कसते है, खा जाने वाली नजरो से देखते है। ये है नारी समानता। उस एक लिपस्टिक वाली प्रतियोगिता ने हमें आइना दिखा दिया की इस समाज में अभी भी ऐसे लोग है जो अपनी बहन को तो घर क अन्दर बंद कर के रखना चाहते है लेकिन दूसरों की बहन को हवशी तमन्नाओ का शिकार बनाना चाहते है। क्या गलत था उस प्रतियोगिता में? लड़के ने किसी लड़की को छुआ तक नहीं, एक सामान्य खेल खेला, लेकिन अतृप्त लोगो की आत्माए तड़फ उठी, उन्हें लगा की वहाँ हम क्यों नहीं? अधूरी तमन्नाये थी की IIT में दाखिला मिल जाए, नहीं मिला तो किसी न किसी बहाने वहाँ के लोगो की बुराई कर के अपने कुंठित मन को सांत्वना देना, यही वजह है की आज भारत के सबसे तेज दिमाग विधार्थियो की बुराई करने में सबको मज़ा आ रहा है। ये तेज़ दिमाग लोगो का खेल और खेल की भावनाए कुछ कम दिमाग वाले लोग अपनी छिछोरी नज़र के कारण समझ नहीं पा रहे हैं।
इन बच्चो को उनके हाल पर छोड़ दो क्योकि ये वास्तव में भारत का नाम रोशन करेंगे, नए रोजगार निर्मित करेंगे, खूब पैसा कमाएंगे। समाचार चैनलों में इस घटना को देख कर कहीं से भी अश्लीलता का अहसास नहीं हुआ और न ही ये अश्लील था। अश्लील तो मीडिया की सोच थी जिसने पूरे मुद्दे को ऐसे उठाया जैसे अब IIT में पढने वाले बच्चे भ्रष्ट हो गए है और अब भारत का कोई भी व्यक्ति IIT में अपने बच्चो का दाखिला नहीं दिलाएगा। मुझे मालूम है की ये विहिप, बजरंग दल, RSS वाले कभी भी अपने बच्चो को यहाँ दाखिले से नहीं रोकेगे क्योकि इनसे ज्यादा मौकापरस्त लोग कोई नहीं है। न ही इस हरकत से भारतीय संस्कृति नष्ट हुयी और न ही IIT की साख में कोई गिरावट आई लेकिन इतना जरूर है की ये पता चल गया कि नौजवानों की जनसँख्या अधिक होने के बावजूद उन पर अपनी लगाम ये बुड्ढ़े ही कसना चाहते है। अगर भारत को विकसित होना है तो इन गन्दी मानसिकता वाले लोगो का देश से साफ़ होना बहुत जरुरी है।
अंत में इतना ही कहूँगा कि गन्दा वंदा कुछ नहीं होता। देखो तो पानी है, समझो तो आंसू है। देखो तो खेल है, समझो तो मासूमियत है।